सक्ती। भारतीय संस्कृति व परंपरा आज भी विश्व में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि भारतीय संस्कृति में मनुष्य के साथ जीव जंतु, पशुपक्षी, पेड़ पौधे, जल-थल-नभ, चर-अचर सभी के सम्मान व पूजन की परंपरा है फिर चाहे जीवित अथवा मृत ही क्यों न हो? इन्हीं परंपराओं में से एक मृत स्वजनों अर्थात पितरों का पूजन भारतीय संस्कृति व परंपरा का प्रमुख व शाश्वत हिस्सा रहा है। इस परंपरा को आत्मसात करते हुए सक्ती मुक्तिधाम के संरक्षण व संवारने हेतु प्रयत्नशील श्री सिद्ध हनुमान मंदिर परिवार, सक्ती ने कार्तिक अमावस्या दीपावली पर मुक्तिधाम में “एक दीया पितरों के नाम” के आगाज के साथ स्मृतिशेष स्वजनों की याद में सामूहिक दीप प्रज्ज्वलित व पूजन कर पितरों को स्वर्गलोक गमन हेतु विदाई दी गई।
धार्मिक मान्यता है कि हमारे स्वर्गवासी स्वजन पितर पक्ष में भूलोक आगमन पर हमारे तर्पण पूजन स्वीकार करने के बाद कार्तिक अमावस्या को पुन: बैकुंठवास परमधाम स्वर्ग द्वार पर पहुंचते हैं जहां एक पल पलट कर अपने परिजनों पर दृष्टिपात करते हैं तथा अपने स्वजनों को एक साथ खड़े होकर दीये की रोशनी में अपना स्मरण पूजन करते देख कर उन्हें अपार तृप्ति व शांति होती है और खुश होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
इन्हीं भारतीय संस्कृति व परंपराओं का अनुसरण श्री सिद्ध हनुमान मंदिर परिवार सक्ती के द्वारा मुक्तिधाम संरक्षण के साथ कार्तिक अमावस्या याने दीपावली के पावन अवसर पर “एक दीया पितरों के नाम” के आगाज के साथ दीप प्रज्ज्वलन कर स्मृतिशेष आत्माओं का पूजन किया गया।
इन पलों में पुजारी ओम प्रकाश वैष्णव ने बताया कि भारतीय संस्कृति परंपराओं का अनुसरण हर सनातनी भारतीय का कर्तव्य है। इस अवसर पर पुजारी ओम प्रकाश वैष्णव,नारायण मौर्य कोंडके, गोवर्धन देवांगन, अमित तंबोली, रिंकू निर्मलकर, संतोष देवांगन, महेंद्र गबेल, दिनेश साहू, दिनेश देवांगन, हुतासन देवांगन आदि के साथ हनुमान परिवार के लोगों ने उन सभी पितरों का पूजन किया जिनके आशीर्वाद और दिए गए संस्कारों का अनुसरण कर समाज में एक पहचान के साथ खड़े होने के योग्य बन सके।